वास्तु शास्त्र
वास्तु शास्त्र सिर्फ भवन निर्माण की तकनीक नहीं है, बल्कि यह विज्ञान, अध्यात्म और ज्योतिष का संगम है। यह विद्या मानव जीवन को पर्यावरण और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ कैसे सामंजस्यपूर्ण बनाया जाए इस पर आधारित है।वास्तु शास्त्र एक भारतीय विज्ञान है जो दिशा से संबंधित है। यह कला, खगोल – विज्ञान और ज्योतिष – विद्या को मिलाकर जीने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान बनाने में मदद करता है । वास्तु शास्त्र के अनुसार हर दिशा में विशेष ऊर्जा होती है। यदि घर या कार्यालय सही दिशा में बनाया जाता है, तो सकारात्मक ऊर्जा बहती है। इससे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी।. वास्तु शास्त्र से जुड़ी कुछ खास बातें
भगवान शिव के पसीने से वास्तु पुरुष की उत्पत्ति हुई है। भगवान शिव का पसीना धरती पर गिरा तो उससे ही वास्तु पुरुष उत्पन्न होकर जमीन पर गिरा। वास्तु पुरुष को प्रसन्न करने के लिए वास्तु शास्त्र की रचना की गई। वास्तु पुरुष का असर सभी दिशाओं में रहता है। इसके बाद वास्तु पुरुष के कहने पर ब्रह्मा जी ने वास्तु शास्त्र के नियम बनाए। जिनके अनुसार कोई भी मकान या इमारत बनाई जाती है। इसके बाद भूमि पूजन से गृह प्रवेश तक हर मौके पर वास्तु पुरुष की पूजा का महत्व है।
वास्तु पुरुष मंडल
वास्तुशास्त्र में वास्तु पुरुष मंडल एक ज्यामितीय आरेख है जो किसी भूमि या भवन की योजना बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। यह एक वर्ग ग्रिड प्रणाली है जिसमें 64 या 81 खंड होते हैं। हर खंड एक देवता या ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
- केंद्र (ब्रह्मस्थान): यह स्थान भवन का हृदय है और इसे खाली रखा जाता है ताकि ऊर्जा का प्रवाह बाधित न हो।
- दिशाओं के देवता: वास्तु पुरुष मंडल में दिशाओं के देवताओं का उल्लेख किया गया है, जैसे:
- ईशान कोण (उत्तर-पूर्व): भगवान शिव का स्थान, आध्यात्मिकता और ज्ञान के लिए।
- अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व): अग्नि देव का स्थान, रसोई और ऊर्जा स्रोतों के लिए।
- वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम): वायु देव का स्थान, शीतलता और मित्रता के लिए।
- नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम): यह स्थायित्व और ताकत का क्षेत्र है।
- पंचमहाभूत (पाँच तत्वों) का महत्व
वास्तु शास्त्र पंचतत्वों के संतुलन पर आधारित है। इन तत्वों का असंतुलन नकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है।
- आकाश: छत की ऊंचाई, खुले स्थान और प्राकृतिक प्रकाश से संबंधित।
- वायु: खिड़कियों और वेंटिलेशन के माध्यम से ऊर्जा का प्रवाह।
- जल: पानी के स्रोतों और उसकी दिशा का महत्व।
- अग्नि: ताप और ऊर्जा (रसोई, गीजर) का सही स्थान।
- पृथ्वी: भवन निर्माण में उपयोग की गई भूमि और सामग्री।
- भवन के विभिन्न हिस्सों के लिए वास्तु सुझाव
मुख्य द्वार (Main Entrance)
- उत्तर, उत्तर-पूर्व, या पूर्व दिशा में होना शुभ होता है।
- द्वार को साफ-सुथरा और आकर्षक बनाए रखें।
- मुख्य द्वार पर शुभ प्रतीक जैसे स्वास्तिक या ओम लगाना अच्छा माना जाता है।
रसोईघर (Kitchen)
- दक्षिण-पूर्व (अग्नि कोण) में रसोई बनानी चाहिए।
- खाना बनाते समय रसोई का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
- रसोई और शौचालय को एक साथ नहीं बनाना चाहिए।
शयनकक्ष (Bedroom)
- मास्टर बेडरूम नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में होना चाहिए।
- बिस्तर उत्तर या पूर्व की ओर सिर करके न लगाएं। दक्षिण दिशा में सिर रखना सबसे शुभ है।
- मिरर (आईना) बिस्तर के सामने न रखें।
पूजा कक्ष (Pooja Room)
- ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में पूजा घर बनाएं।
- पूजा करते समय आपका मुख पूर्व की ओर होना चाहिए।
- पूजा घर को स्वच्छ और शांत स्थान पर रखें।
बाथरूम और शौचालय (Bathroom and Toilet)
- बाथरूम उत्तर-पश्चिम (वायव्य) में रखें।
- शौचालय और बाथरूम को ईशान कोण में न रखें।
ड्राइंग रूम (Living Room)
- यह स्थान उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए।
- सोफे को दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर रखें।
- खुला और रोशनी वाला स्थान शुभ होता है।
सीढ़ियाँ (Stairs)
- दक्षिण या पश्चिम दिशा में सीढ़ियाँ बनाएं।
- सीढ़ियाँ हमेशा दक्षिण से उत्तर या पश्चिम से पूर्व दिशा में चढ़नी चाहिए।
- वास्तु दोष और उनके उपाय
वास्तु दोष के कारण:
- दिशाओं का गलत उपयोग।
- पंचतत्वों में असंतुलन।
- वास्तु नियमों के विपरीत निर्माण।
उपाय:
- उत्तर-पूर्व दोष: इस स्थान को साफ-सुथरा रखें। पानी का स्रोत यहां लगाएं।
- दक्षिण-पश्चिम दोष: भारी फर्नीचर और धातु की वस्तुएं रखें।
- मुख्य द्वार दोष: द्वार पर मंगलकारी प्रतीक लगाएं।
- मिरर दोष: दर्पण को सही दिशा में रखें।
- वास्तु शास्त्र का वैज्ञानिक पक्ष
- वास्तु के नियम ब्रह्मांडीय ऊर्जा और पर्यावरण के साथ सामंजस्य पर आधारित हैं।
- प्राकृतिक रोशनी, वेंटिलेशन और तापमान संतुलन की अनुमति देने के लिए दिशाओं और स्थानों को चुना जाता है।
- यह एक तरह का मनोविज्ञान भी है, जो आपके घर और कार्यस्थल पर सकारात्मक माहौल बनाता है।
- वास्तु शास्त्र और आधुनिक जीवन
आधुनिक जीवन में वास्तु शास्त्र को पूर्ण रूप से लागू करना हमेशा संभव नहीं होता, लेकिन छोटे बदलावों और उपायों से सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। जैसे –
प्रमुख उदाहरण:
- घर से काम वर्क फ्रॉम के लिए उत्तर-पूर्व में कार्यक्षेत्र बनाना।
- घर में पौधों और प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग।
- बिजली के उपकरण दक्षिण-पूर्व में रखना।
- दिशाओं का विस्तृत महत्व
पूर्व दिशा (East)
- यह सूर्य उदय की दिशा है और इसे ऊर्जा और ज्ञान का स्रोत माना जाता है।
- घर का मुख्य द्वार और पूजा कक्ष पूर्व दिशा में होना शुभ होता है।
पश्चिम दिशा (West)
- यह दिशा स्थायित्व और संतुलन से जुड़ी है।
- पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष या स्टडी रूम बनाना उपयुक्त है।
उत्तर दिशा (North)
- यह दिशा कुबेर (धन के देवता) की मानी जाती है।
- तिजोरी या धन से जुड़े स्थान उत्तर दिशा में रखें।
दक्षिण दिशा (South)
- दक्षिण दिशा स्थायित्व और ताकत का प्रतीक है।
- शयनकक्ष इस दिशा में बनाना शुभ है।
ईशान कोण (उत्तर-पूर्व)
- यह सबसे पवित्र दिशा मानी जाती है और आध्यात्मिकता और जल तत्व से जुड़ी है।
- यहां पूजा घर, जल स्रोत, या गार्डन बनाए जा सकते हैं।
अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व)
- अग्नि देव का स्थान है और रसोई के लिए आदर्श दिशा है।
- यहां बिजली के उपकरण रखना भी शुभ होता है।
वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम)
- यह वायु देव की दिशा है और इसे मित्रता, सामाजिकता और वायु तत्व से जोड़ा जाता है।
- अतिथि कक्ष और बच्चों के कमरे के लिए यह दिशा उपयुक्त है।
नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम)
- यह दिशा स्थायित्व और शक्ति से जुड़ी है।
- घर के मालिक का शयनकक्ष और भारी वस्तुएं यहां रखनी चाहिए।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार भूमि का चयन
- आकार:
- वर्ग या आयताकार भूमि शुभ मानी जाती है।
- त्रिकोण या असमान आकार की भूमि से बचें।
- ढलान:
- उत्तर या पूर्व दिशा में ढलान होना शुभ है।
- दक्षिण या पश्चिम की ओर ढलान अशुभ मानी जाती है।
- पड़ोस (Neighbourhood):
- साफ-सुथरा और सकारात्मक ऊर्जा वाला क्षेत्र चुनें।
- श्मशान, कब्रिस्तान, या गंदे स्थानों के पास भूमि अशुभ मानी जाती है।
- वास्तु शास्त्र और प्रकृति का सामंजस्य
पेड़-पौधे
- तुलसी, मनी प्लांट, और बांस जैसे पौधे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाते हैं।
- कांटेदार पौधों (जैसे कैक्टस) को घर के अंदर रखने से बचें।
जल तत्व
- पानी के फव्वारे, एक्वेरियम, और कुंए को उत्तर-पूर्व दिशा में रखें।
- पानी का रिसाव वास्तु दोष पैदा करता है, इसे तुरंत ठीक करें।
प्राकृतिक प्रकाश और वेंटिलेशन
- सूरज की रोशनी का भरपूर उपयोग करें, खासकर पूर्व दिशा से।
- खिड़कियों और वेंटिलेशन के लिए उत्तर और पूर्व दिशा को प्राथमिकता दें।
- वास्तु दोष और उसके आसान समाधान
मुख्य द्वार दोष
- यदि मुख्य द्वार अशुभ दिशा में है, तो दरवाजे पर पंचमुखी हनुमान जी की तस्वीर या स्वास्तिक का चिह्न लगाएं।
बीम के नीचे बैठना या सोना
- यह नकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है। बीम को छिपाने के लिए फॉल सीलिंग बनवाएं।
दर्पण का वास्तु दोष
- बेडरूम में दर्पण इस तरह रखें कि वह सोते समय व्यक्ति को न दिखे।
- दर्पण को साफ और सही दिशा में रखें, जैसे उत्तर या पूर्व।
रसोई और शौचालय का दोष
- यदि रसोई और शौचालय आमने-सामने हैं, तो एक पर्दा लगाएं या अलगाव का कोई उपाय करें।
घर में दरारें और खराब चीजें
- दीवारों की दरारें, रिसाव, या टूटी वस्तुएं वास्तु दोष का कारण बनती हैं। इन्हें तुरंत ठीक करें।
- वास्तु और ज्योतिष का संबंध
वास्तु शास्त्र और ज्योतिष विज्ञान में गहरा संबंध है।
- ग्रह और दिशाएँ:
- सूर्य: पूर्व दिशा (ऊर्जा और स्वास्थ्य)।
- चंद्रमा: उत्तर दिशा (शांति और धन)।
- मंगल: दक्षिण दिशा (शक्ति और स्थायित्व)।
- बुध: उत्तर-पूर्व दिशा (ज्ञान और विकास)।
- शुक्र: पश्चिम दिशा (सुख और विलासिता)।
- शनि: दक्षिण-पश्चिम दिशा (संरक्षण और स्थिरता)।
- कुंडली और वास्तु:
- कुंडली के ग्रह दोष को वास्तु उपायों से कम किया जा सकता है।
- जैसे, राहु-केतु के दोष में घर को साफ और व्यवस्थित रखने की सलाह दी जाती है।
- आधुनिक जीवन में वास्तु शास्त्र का उपयोग
आजकल वास्तु शास्त्र को वास्तुकला, इंटीरियर डिजाइन और शहरी नियोजन में अपनाया जा रहा है।
- फ्लैट और अपार्टमेंट में वास्तु:
- हर दिशा का उपयोग संभव नहीं होता, लेकिन छोटे उपाय (जैसे, रंग और सजावट) से वास्तु दोष कम किया जा सकता है।
- ऑफिस और वर्कस्पेस:
- बैठने की व्यवस्था ऐसी हो कि व्यक्ति का मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर हो।
- रंग उपचार और वास्तु:
- हर दिशा के लिए सही रंग का उपयोग करें, जैसे पूर्व दिशा के लिए हल्का हरा और दक्षिण के लिए लाल या नारंगी।
- वास्तु शास्त्र के प्रमुख लाभ
- मानसिक शांति और स्वास्थ्य में सुधार।
- आर्थिक स्थिरता और समृद्धि।
- रिश्तों में सामंजस्य।
- नकारात्मक ऊर्जा से बचाव।
- कार्य में सफलता और प्रगति।
नोट: वास्तु शास्त्र को पूर्ण रूप से लागू करना हर स्थान पर संभव नहीं होता, लेकिन सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे बदलाव बड़े प्रभाव डाल सकते हैं।
वास्तु शास्त्र का ज्ञान बेहद गहन और विस्तृत है। इसमें ब्रह्मांडीय ऊर्जा और प्राकृतिक तत्वों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की विधि बताई गई है। आइए इसे और विस्तार से जानें:
- वास्तु शास्त्र में दिशाओं के अनुसार काम
प्रत्येक दिशा को एक विशेष ऊर्जा या गतिविधि के लिए उपयुक्त माना गया है।
दिशा और गतिविधि तालिका:
दिशा | उपयुक्त गतिविधियाँ या स्थान |
पूर्व (East) | मुख्य द्वार, पूजा कक्ष, बालकनी, विंडो |
पश्चिम (West) | स्टडी रूम, भोजन कक्ष, बच्चों का कमरा |
उत्तर (North) | तिजोरी, जल स्रोत, ऑफिस |
दक्षिण (South) | मास्टर बेडरूम, स्टोर रूम |
ईशान कोण (NE) | पूजा कक्ष, पानी का स्रोत, मेडिटेशन स्पेस |
अग्नि कोण (SE) | किचन, विद्युत उपकरण, अग्नि से जुड़े कार्य |
वायव्य (NW) | गेस्ट रूम, स्टोर रूम, वेंटिलेशन |
नैऋत्य (SW) | मास्टर बेडरूम, भारी सामान, तिजोरी |
- घर में हर कमरे के लिए वास्तु शास्त्र
- प्रवेश द्वार (Main Door)
- मुख्य द्वार को वास्तु में “संपत्ति और समृद्धि का द्वार” माना जाता है।
- उत्तर, उत्तर-पूर्व, या पूर्व दिशा में मुख्य द्वार शुभ होता है।
- दरवाजे पर स्वास्तिक, ऊँ, या शुभ-लाभ का चिह्न लगाएं।
- टूटा या खड़खड़ाता दरवाजा न रखें।
- रसोईघर (Kitchen)
- दक्षिण-पूर्व दिशा में रसोई सबसे शुभ है।
- खाना बनाते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
- पानी और अग्नि तत्व (सिंक और गैस चूल्हा) को पास-पास न रखें।
- पूजा कक्ष (Pooja Room)
- पूजा घर उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में बनाएं।
- मूर्तियों को दीवार से थोड़ा हटाकर रखें।
- पूजा घर के ऊपर या नीचे शौचालय या रसोई न बनाएं।
- बेडरूम (Bedroom)
- मास्टर बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में हो।
- शयन करते समय सिर दक्षिण या पूर्व की ओर रखें।
- बेड के नीचे खाली स्थान रखें, और अनावश्यक चीजें जमा न करें।
- शौचालय और बाथरूम
- उत्तर-पश्चिम दिशा में शौचालय और बाथरूम रखें।
- बाथरूम में नकारात्मक ऊर्जा को संतुलित करने के लिए समुद्री नमक का उपयोग करें।
- बाथरूम का दरवाजा हमेशा बंद रखें।
- लिविंग रूम (Drawing Room)
- उत्तर, पूर्व, या उत्तर-पूर्व दिशा में लिविंग रूम बनाएं।
- फर्नीचर को दक्षिण या पश्चिम की ओर रखें।
- दीवारों पर हल्के रंगों का उपयोग करें।
- सीढ़ियाँ (Stairs)
- दक्षिण या पश्चिम दिशा में सीढ़ियाँ शुभ मानी जाती हैं।
- सीढ़ियाँ घड़ी की दिशा में घूमती हुई बनाएं।
- सीढ़ियों के नीचे स्टोर रूम या टॉयलेट न बनाएं।
वास्तु दोष के अन्य समाधान
- तिजोरी या धन स्थान
- तिजोरी उत्तर दिशा में रखें और उसका मुंह दक्षिण की ओर खुलना चाहिए।
- तिजोरी में धन को हमेशा लाल या पीले कपड़े में रखें।
- पानी का रिसाव
- पानी का टपकना आर्थिक नुकसान का संकेत देता है। इसे तुरंत ठीक करें।
- फर्श या दीवारों की दरारें
- टूट-फूट या दरारें नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती हैं। इन्हें तुरंत मरम्मत करें।
- कांटेदार पौधे
- कैक्टस और अन्य कांटेदार पौधे घर के अंदर न रखें।
- तुलसी, मनी प्लांट, या बांस के पौधे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाते हैं।
- वेंटिलेशन और रोशनी
- खिड़कियाँ उत्तर और पूर्व दिशा में होनी चाहिए।
- प्राकृतिक रोशनी और ताजी हवा का घर में आना जरूरी है।
- इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की स्थिति
- टीवी, फ्रिज, और अन्य उपकरणों को दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें।
- बेडरूम में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण कम से कम रखें।
- वास्तु में रंगों का महत्व
रंग न केवल सौंदर्य बढ़ाते हैं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा को भी प्रभावित करते हैं।
दिशा और रंग तालिका:
दिशा
उपयुक्त रंग
उत्तर (North)
हल्का हरा, सफेद
दक्षिण (South)
लाल, गुलाबी, नारंगी
पूर्व (East)
हल्का पीला, सुनहरा
पश्चिम (West)
नीला, ग्रे
ईशान (NE)
हल्का पीला, सफेद
अग्नि (SE)
लाल, नारंगी
वायव्य (NW)
हल्का ग्रे, क्रीम
नैऋत्य (SW)
गहरा भूरा, भूरा, मैजेंटा
- वास्तु और मानसिक स्वास्थ्य
वास्तु शास्त्र आपके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
- उत्तर-पूर्व दिशा को साफ और अव्यवस्था रहित रखें; यह मानसिक शांति लाता है।
- घर में प्राकृतिक तत्वों जैसे पौधे, पानी, और खुली जगह का समावेश करें।
- बैडरूम में हल्के और शांत रंगों का उपयोग करें।
- नियमित रूप से घर में गंगाजल या अन्य पवित्र जल का छिड़काव करें।
- आधुनिक वास्तु सलाह
फ्लैट्स और अपार्टमेंट्स में वास्तु
- सीमित स्थान में वास्तु शास्त्र का पालन पूरी तरह संभव नहीं है, लेकिन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जा सकता है।
- मुख्य द्वार की दिशा का ध्यान रखें।
- बालकनी और खिड़कियों का स्थान उत्तर या पूर्व दिशा में हो।
वर्क फ्रॉम होम सेटअप
- आपका वर्क डेस्क उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
- पीछे की दीवार पर प्रेरणादायक चित्र लगाएं।
- वास्तु शास्त्र और आध्यात्मिकता
वास्तु शास्त्र का संबंध आध्यात्मिक ऊर्जा से भी है।
- उत्तर-पूर्व दिशा में ध्यान और योग का स्थान रखें।
- घर में सकारात्मक ऊर्जा के लिए नियमित रूप से हवन या दीप जलाएं।
- धार्मिक प्रतीक और मंत्र घर में सकारात्मक उर्जा लाते हैं।
यहाँ वास्तु शास्त्र के विभिन्न और विस्तृत पहलुओं के साथ एक और विस्तारित तालिका प्रस्तुत की गई है, जिसमें हर मुख्य विचार को विस्तार से कवर किया गया है। यह अधिक जानकारी के साथ वास्तुशास्त्र को व्यवस्थित रूप में समझने में मदद करेगी।